शुक्रवार, 12 अक्तूबर 2007

महबू‍बा ने जो कुछ कहा......


'आफ़्सपा' को खत्‍म करो

जम्‍मू-कश्‍मीर से सेना वापसी, कश्‍मीरी स्‍वायतता, अलगाववादियों के संघर्ष, अफ़जल की फांसी और आफ़्सपा कानून जैसे मसलों पर पीपुल्‍स डेमोक्रेटिक पार्टी की अध्‍यक्ष महबूबा मुफ्ती से अजय प्रकाश की बातचीत :
कश्मीर में भारतीय फौजों की मुस्तैदी क्यों नहीं की जाये?
वर्ष २००४ के लोकसभा चुनावों में अस्सी फीसदी वोट पड़ने से यह साबित होता है कि परिस्थितियां बदल चुकी हैं हालिया सरकारी आंकडों के मुताबिक़ मात्र ८०० आतंकवादी कश्मीर में सक्रिय हैं जबकि कभी इनकी तादाद हज़ारों में थी और लाखों की संख्या में इनके समर्थक थे पिछले २००३-०४ से भारी संख्या में पर्यटकों का आना-जाना शुरू हुआ है ऐसे में तमाम तथ्य इस बात की गवाही देते हैं के कश्मीरियों को फौज की नहीं, नये सुकूनी माहौल की ज़रूरत है १७ सालों से अस्पताल, स्कूल, ऑफिस, मस्जिद, यहां तक कि हमारे खेत भी फौजों के साये से ऊब चुके है नयी पीढियां अब खुली हवा में सांस लेना चाह्ती हैं एक नागरिक का सम्मान चाहती हैं

क्या फौज हटाने पर हालात बदतर नहीं होंगे
खौफ में जी रहे लोगों के बीच से सेना चली जायेगी तो जनता, सुरक्षा बलों से भी बेहतर ढंग से संतुलित हालात क़ायम करेगी। क्योंकि उसे फिर से फौज नहीं चाहिये प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, केन्द्रीय गृहमंत्री और सेना प्रमुख का बार-बार यह कहना कि कश्मीर की आबो-हवा बदली है और लोगों की लोकतंत्र के प्रति आस्था बढी है, इसी बात की गवाही है। जिन पार्टियों या संगठनों को यह लगता है कि फौज हटते ही कश्मीर में आफत आ जायेगी वह लोकतंत्र में सरकार की भूमिका को दरकिनार करते हैं शांति व्यवस्था बनाये रखने का सारा दारोमदार जब फौज पर ही है तो चुनाव कराने की क्या ज़रूरत। राष्ट्रपति शासन क्यों नहीं लागू करा दिया जाता? भारतीय फौज की छवि कश्मीरियों के बीच कैसी है?कश्मीर के मामले में ये सच है कि कभी फौजों ने सड़क या पुल निर्माण जैसे बेहतर काम भी किये हैं। मगर सैकड़ों फर्जी मुठभेडें भी फौजी जवानों ने ही की हैं
आजादी से लेकर अब तक कश्मीर समस्या के समाधान के प्रति राज्य और केन्द्र में से बेहतर रोल किसका रहा है?
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने हिन्दुस्तान-पाकिस्तान के बीच जिस वार्ता की शुरूआत की उसे ही मैं समाधान की तरफ बढा़ पहला क़दम मानती हूं हां, यह सच है कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह उसी को सावधानी और सफलतापूर्वक आगे बढा रहे हैं अवाम को समझ में आ गया है कि कश्मीर समस्या का समाधान हिन्दुस्तान, पाकिस्तान और कश्मीरी प्रतिनिधियों की त्रिपक्षीय वार्ता से संभव है,हथियारों से नहीं एक मत ऐसा भी है कि जम्मू कश्मीर में जारी अशांति और खौफ हिन्‍दुस्‍तान पाकिस्‍तान का सियासती मुआमला है। यह बीते समय की बात है अब भारत और पाकिस्तान में होने वाली सियासतों के साथ-साथ आर्थिक ज़रूरतें भी महत्वपूर्ण हो गयीं हैं सही मायने में बाजार की ज़रूरतों ने उन सरहदों को तोड़ना शुरू कर दिया है जिनका राजनीतिक हल नहीं निकल सका क्या यह अच्छा नहीं होगा कि लोग सरहद पार पाकिस्तान के मुज़फ्फ़राबाद से खरीदारी करें और पाकिस्तान के लोग भी कश्मीरियों को गले लगायें दोनों देशों में जारी भूमण्डलीकरण ने जो नयी सामाजिक-आर्थिक परिघटना पैदा की है उससे भारत-पाकिस्तान के बीच एक नये सौहार्दपूर्ण भविष्य का निर्माण होगा।
अलगाववादियों के संघर्ष से पीडीपी के कैसे रिश्ते हैं, कश्मीर देश बनाने की मांग आज के समय में कहां खड़ी है?
लोकतंत्र में सभी को अपने मत के हिसाब से संगठन बनाने का अधिकार है। मैं अलगावादियों की मांगों को सिर्फ इसी रूप में देखती हूं। स्वायत्त कश्मीर की मांग पीडीपी कभी नहीं किया। यह मुद्दा नेशनल कांफ्रेंस का है। पीडीपी का मानना है कि स्वायत्तता से बड़ा प्रश्न जनता के सशक्तीकरण और नागरिक अधिकारों को बहाल कराने का है। साथ ही राज्‍य के लोग एक लंबे अनुभव से यह समझ चुके हैं कि अलग कश्मीर समस्या का समाधान नहीं है। कहा जा रहा है कि अफजल की फांसी, एक बार फिर कश्मीरी युवाओं के हाथों में हथ‍ियार थमा सकती है। १९८४ में मकबूल बट्ट को फांसी दिये जाने के बाद युवाओं ने हिन्दुस्तानी हुकूमत के खिलाफ हथियार उठा लिये थे। खुदा-न-खास्ता ऐसा हुआ तो कहा नहीं जा सकता कि कैसे हालात बनेंगे? पीडीपी की मांग रही है कि अफजल को फांसी न दी जाये। पहले फेयर ट्रायल हो फिर सजा मुकर्रर की जाये।
कश्मीर में लागू आफ्सपा के बारे में आपका मत ?
आफ्सपा अलोकतांत्रिक कानून है । इसमें न्‍यूनतम नागरिक अधिकार खत्म हो जाते हैं। हिन्दुस्तान-पाकिस्तान वार्ता सुचारू हो, कश्मीरी भारतीय सरकार में विश्वास करें, इसके लिए जरूरी है‍ कि सरकार जन विरोधी कानून को तत्‍काल रद्द करे। आफ्सपा की दहशत को हम दिल्ली या किसी दूसरे राज्य में रहकर महसूस नहीं कर सकते। कोई कश्मीर में जाकर देखे कि शादी के मंडप से लेकर अस्पताल तक संगीनों और कैंपों की इजाजत के मोहताज होते हैं।
कश्मीर के पैंतीस फीसदी शिक्षित युवा बेरोजगार हैं, इसके लिये कोई प्रयास।
अभी राज्य को हम एक असामान्य से सामान्य राज्य की तरफ ले जा रहे हैं। पूरी ताकत से रोजगार सृजन और साधन संपन्न कश्मीर बनाने की तैयारी है। गौर करने लायक यह है कि देश-दुनिया के दूसरे हिस्सों के उद्योगपति कश्‍मीर में कल-कारखाने खोलने से हिचक रहे हैं। कारण कि यहाँ फौज है। जब तक फौज रहेगी, पुरस्कार के लिये कश्मीरी युवा पाकिस्तानी आतंकवादी बताकर मारे जाते रहेंगे और उद्योगपति कश्मीरी सीमा में प्रवेश ही नहीं करेंगे। जहाँ घाटी के एक लाख कनाल जमीन पर सुरक्षा बल अबैध रूप से कब्जा जमाये हुये हैं वहीं लद्दाख के दो लाख कनाल पर उनका ही कब्जा है। सभी जानते हैं कि लद्दाख आतंक प्रभावित क्षेत्र नहीं है। साथ ही हिन्दुस्तान-पाकिस्तान में हुई इन्डस ट्रीटी संधि से हर साल ६,००० करोड़ रुपये का नुकसान होता है जिसका प्रत्यक्ष असर कश्मीर की अथर्व्यवस्था पर पड़ता है।
राज्य में कश्मीरी हिन्दुओं पर हुये जुल्मों के लिये मुस्लिम कट्टरपंथ कितना जिम्मेदार है?
जो जुल्म हुआ उसमें सिर्फ कश्मीरी हिन्दू ही तबाह-बरबाद नहीं हुए बल्कि मुस्लिम भी आतंकवादी और फौजी हमलों में मारे गये। कश्मीरी हिन्दुओं के जाने से स्कूलों के मौलवी बेरोजगार हुये, क्षेत्र की अथर्व्यवस्था चौपट हुयी। बहरहाल सौहार्द का माहौल कायम हो रहा है। इस वर्ष खीर वाड़ी पर्व पर हजारों कश्मीरी हिन्दुओं का पहुंचना इसी का प्रमाण है। पीडीपी पर यह आरोप है कि वह कट्टरवादी शक्तियों का समर्थन करती रही है? हमेशा से पीडीपी आरोपों का जवाब अपने काम से देती आ रही है। हमारा समर्थन सुकून और सौहार्द कायम करने वालों के साथ है, आरोप चाहे जो लगें।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें