बुधवार, 10 अक्तूबर 2007

मैंने कहा......

मैं इश्‍क़ हूं.....
मैंने कहा-
वे खुश हो गए
कि
मैं उनके साथ हूं.....
मैं आंदोलन हूं....
मैंने घोषणा की...
उन्‍होंने बाहें फैला दीं
कि
मैं उनके साथ हूं....
मैं बेटी और बहू हूं....
मैंने नज़र झुका ली....
उन्‍होंने संतोष की सांस ली
कि
मैं सही रास्‍ते पर हूं....
मैं पंछी हूं...
मैंने उड़ान भरी......
उन्‍होंने मेरे आसमान पर मंडराना शुरू कर दिया
कि
मैं उनकी पहुंच में हूं.....
मैं आज़ादी हूं.....
उन्‍होंने मेरा बिस्‍तर देखा....
कि
मैं उनकी आगोश में हूं....
मैं स्‍त्री हूं.....
उन्‍होंने आह्वान किया
कि
वे पुजारी हैं.....
मैं इंसान हूं....
मैंने उद्घोष किया
वे सब सिमट गए......।

अनुजा

2 टिप्‍पणियां:

  1. अब भला ये कैसे गवारा होता.........इसके लिये तो दिल चाहिये बड़ा वाला और दिमाग चाहिये खुला वाला.

    बेहतरीन
    नमिता

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