सोमवार, 18 सितंबर 2023

मैं आँसू का गीति काव्य....

मैं आँसू का गीति काव्य, मुसकान तुम्हारी है साथी
मैं नदी धार सी शान्त सजल, तुम निर्झर की चंचल धारा !

मेरा पथ कितना एकाकी औ’ फिर विषाद से नाता है
लेकिन तव उर को धूप नहीं चन्दा का आँचल भाता है
कैसे फिर अपना मिलन भला संभव होगा इस आँगन में
बदली मेरे पथ की साथी, ऋतुराज तुम्हें पर भाता है!

तुमने कर विजयी कुरुक्षेत्र, जीवन का नव-पथ खोज लिया
मेरा जीवन रण-स्थल में फिरता असफल हारा-हारा !

मैं चाह रही तुमसे मिलना, तुम पथ परिवर्तित करते हो
मैं अश्रुधार में डूब रही, तुम हँसी बाँटते फिरते हो 
तुम आँगन में आकर मेरे, चाहे अठखेली कर जाओ 
लेकिन मम उर में बसने से जाने क्यों इतना डरते हो ?

जीवन-आँगन में धूप छाँव तो संग-संग चलती रहती है
पर मेरे जीवन का प्रभात मैंने यामिनि पर है वारा !

मैंने हैं तुमको भाव दिए, अपने शब्दों में बाँधा है
मैंने जीवन का हर दुःख-सुख, तुम पर ही अपना साधा है
पर तुमने मम उर तोड़ दिया, तुमने मुझसे मुहँ मोड़ लिया
मैंने तो दीप जलाया है, उस लौ में तुमको बाँधा है!

इस एक शिखा का अग्निदाह, तुमको चाहे पत्थर कर दे
लेकिन मैं भी इस पत्थर से पा जाऊँगी शीतल धारा !

 11.01.1985

अनुजा