जब पैरों के नीचे
जलती है ज़मीन
और
सिर पर
आग उगलता है आसमान ,
तब
आता है समझ में
जीवन
का सही मतलब...!
तुम्हें क्या पता
कि
चिलचिलाती हुई ज़मीन
कैसे अपनी लपटें पहुंचाती है
जूतों के पार
मेरे तलवों तक.... !
तुम्हें क्या पता
कि
जि़न्दगी कितने इम्तिहान ले सकती है
इंसान के....
तुम्हें क्या पता
कि
किस चांदनी के लिए
सह रहे हैं पांव
अभी भी धूप की तपन को..... !
अनुजा
21.09. 96
जलती है ज़मीन
और
सिर पर
आग उगलता है आसमान ,
तब
आता है समझ में
जीवन
का सही मतलब...!
तुम्हें क्या पता
कि
चिलचिलाती हुई ज़मीन
कैसे अपनी लपटें पहुंचाती है
जूतों के पार
मेरे तलवों तक.... !
तुम्हें क्या पता
कि
जि़न्दगी कितने इम्तिहान ले सकती है
इंसान के....
तुम्हें क्या पता
कि
किस चांदनी के लिए
सह रहे हैं पांव
अभी भी धूप की तपन को..... !
अनुजा
21.09. 96