शनिवार, 31 दिसंबर 2011

नए बरस में

पेड़ों ने बदल लिया रंग
और सूरज ने पैंतरा.....
टिमटिमाता रहा बस के शीशे प अनमना सा
मठमैली सी शांति के बीच
फूलों की घाटी में अचानक उठी एक हिलोर
आसमान कड़कने और बरसने लगा....

जाते हुए बरस की लौटती हुई शाम
खुले आसमान के नीचे खड़ी हुई भीगती रही
उम्‍मीद में सांझ के तारे की
जिसके ताप से परस जाएगा रोम रोम
ठिठुरन से मिलेगी राहत...

राहत की रात के सिरहाने से गिर पड़ा तकिया
टंक गया पूरबिया आसमान पर...
धुंधले दुशाले पर सुबह ने लिखी इबारत
बीत गयी दु:ख की सुहानी रात
ईश्‍वर सो गया सुख से फैलाए पांव
दरवाजे पर थाप दी धूप ने
छम से कूद कर
खींच दी एक सुनहली लकीर आंगन में
दौड़ कर फैल गयी मां के चौके तक....

द्वार पर टेरते भिखारी के कटोरे में खनके कुछ सिक्‍के उम्‍मीद के
छाने लगी गुनगुनी धूप
लड़कियों के ठंड में ठिठुरने के अंत की हो रही है शुरूआत...
इस नए बरस में.....।

अनुजा
31.12.11
फोटो : अनंत अग्रवाल

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