उसे भी याद न आयी जो जानता था हमें
तो अब तुम्हारी नवाजि़श का इंतज़ार ही क्या।
लहूलुहान अगर जिस्म हुआ कांटों से
तो फिर हमारे चमन में कोई बहार ही क्या।
ख़ुदी भी अब तो हुई बेअसर ख़ुदाओं पर
बगैर वक़्त के मिलता है इंतज़ार भी क्या।
न यूं कहो कि खुदा कुछ नहीं है दुनिया में
बिना ख़ुदा के नहीं कुछ मिला करार ही क्या।
अगर संवरना है तो टूटना भी वाजि़ब है
बिना तराशे मिला गुल को है निखार भी क्या।
अनुजा
03.12.1996
तो अब तुम्हारी नवाजि़श का इंतज़ार ही क्या।
लहूलुहान अगर जिस्म हुआ कांटों से
तो फिर हमारे चमन में कोई बहार ही क्या।
ख़ुदी भी अब तो हुई बेअसर ख़ुदाओं पर
बगैर वक़्त के मिलता है इंतज़ार भी क्या।
न यूं कहो कि खुदा कुछ नहीं है दुनिया में
बिना ख़ुदा के नहीं कुछ मिला करार ही क्या।
अगर संवरना है तो टूटना भी वाजि़ब है
बिना तराशे मिला गुल को है निखार भी क्या।
अनुजा
03.12.1996