इस कदर थक के चूर हैं आंखें
कोई सीढ़ी नज़र नहीं आती।
वक्त की राह देखते हैं यूं
कोई सूरत भी अब नहीं भाती ।
याद आती है अब अकेले ही
साथ उसको कभी नहीं लाती।
रौशनी कम है इन सितारों की
तीरगी को मिटा नहीं पाती ।
कब तक उम्मीद का जलाएं दिया
सुबह अब भी नज़र नहीं आती।
जब से रस्ते में मिल गया है सच
बेखुदी अब कभी नहीं छाती ।
अनुजा
30.11.1996
कोई सीढ़ी नज़र नहीं आती।
वक्त की राह देखते हैं यूं
कोई सूरत भी अब नहीं भाती ।
याद आती है अब अकेले ही
साथ उसको कभी नहीं लाती।
रौशनी कम है इन सितारों की
तीरगी को मिटा नहीं पाती ।
कब तक उम्मीद का जलाएं दिया
सुबह अब भी नज़र नहीं आती।
जब से रस्ते में मिल गया है सच
बेखुदी अब कभी नहीं छाती ।
अनुजा
30.11.1996
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