ये भी इन्सान की नवाजि़श है
बिन पिए ही वो आज बेख़ुद है।
सांप की तरह लग रहा है अब
ऐसी कुछ आदमी की फि़तरत है।
कुछ सही या ग़लत समझ न अरे
जब तक उसकी नहीं इनायत है।
हमसे ही छीनते हो तुम मंजि़ल
ऐसी भी हमसे क्या अदावत है।
कोई अाखि़र तो निगहबान बने
कब से ख़ाली पड़ी इमारत है।
दिन गए वो कभी मिला ही नहीं
कैसे जानें उसे मुहब्बत है ।
जब उठा है तो गिर सकेगा नहीं
उसके गिरने में ही क़यामत है।
इस खिजां से कहो ज़रा ठहरे
कुछ बहारों की भी हक़ीक़त है।
बाज की तरह छीनता है सब
कैसी उस आदमी की नीयत है।
तुम भी ले लो जो तुमको ठीक लगे
सबको थी, तुमको भी इजाज़त है।
या सहारा न दो, या साथ चलो
अब नहीं टूटने की हिम्मत है।
अनुजा
30.11.1996
बिन पिए ही वो आज बेख़ुद है।
सांप की तरह लग रहा है अब
ऐसी कुछ आदमी की फि़तरत है।
कुछ सही या ग़लत समझ न अरे
जब तक उसकी नहीं इनायत है।
हमसे ही छीनते हो तुम मंजि़ल
ऐसी भी हमसे क्या अदावत है।
कोई अाखि़र तो निगहबान बने
कब से ख़ाली पड़ी इमारत है।
दिन गए वो कभी मिला ही नहीं
कैसे जानें उसे मुहब्बत है ।
जब उठा है तो गिर सकेगा नहीं
उसके गिरने में ही क़यामत है।
इस खिजां से कहो ज़रा ठहरे
कुछ बहारों की भी हक़ीक़त है।
बाज की तरह छीनता है सब
कैसी उस आदमी की नीयत है।
तुम भी ले लो जो तुमको ठीक लगे
सबको थी, तुमको भी इजाज़त है।
या सहारा न दो, या साथ चलो
अब नहीं टूटने की हिम्मत है।
अनुजा
30.11.1996
Bahut khoob kaha!
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