सोमवार, 14 नवंबर 2011

ग़ज़ल

ये माना हार रहे हैं तुम्‍हारी मौजों से
समन्‍दरों के भी तूफां मगर संभाले हैं ।।

ये तीरगी का समां देर तक रूकेगा नहीं
कहीं वो दूर पे छुपकर खड़े उजाले हैं ।।

तुम्‍हारे तेज थपेड़ों से बुझ सकेगा नहीं
बड़ी उम्‍मीद से रौशन दिया ये बाले हैं।।

लगी है जि़द कि यहीं आशियां बनाएंगे
वो रोक पाएंगे क्‍या जो बड़े जियाले हैं।।

चलेंगे तर्ज़ पे अपनी ज़माना आयेगा
हज़ार जख्‍़म इसी इक सुकूं ने पाले हैं।।

उफक पे डूब रहा आफताब, जाने दो
कि माहताब तो हर रंग में निराले हैं।।

ये ठीक है कि अकेले हैं इस सफर में हम
समय ने दूर बहुत काफिले निकाले हैं।।

जो गिर गया है बटोही तो हार मत जानो
कि उठ के चलने की हिम्‍मत अभी संभाले है।।

अनुजा
09.09.96

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