समय और समाज के साथ
हो या न हो....
अपने साथ है जो
वही कविता है.....
हूं...या नहीं हूं....के द्वन्द्व से पर
अपने होने या नहीं होने के बीच
सरकती है जो
वही कविता है....
समय की ताल पर धड़कती है तो
ख़त्म हो जाती है समय के साथ वह
पर जब धड़कती है तुम्हारे सीने में
तो वह कविता है.....
तुम्हारे खोने या मेरे बिछुड़ने में.....
तुम्हारे हंसने या मेरे रोने में......
तड़तड़ाती बारिश की मोटी-मोटी बूंदों में.....
टहनियों की सरसराती गुफ्तगू में....
मज़दूर की कुदाल या किसान के हंसिये में......
कहीं भी
जो मिलाती है तुम्हारी धड़कन से ताल .....
वही कविता है.....
तेजी से भागते ट्रैफिक, बस में बजते फूहड़ गीतों
या प्रदूषण की दम घोंटती गंध के बीच
हवा के बसंती मस्त झोंके में
छूकर गुज़र जाती है जो मन
वही कविता है......
मेरे दोस्त, तुम्हारी नज़र के मापक की
मोहताज नहीं है जो.....
वही कविता है ....
मेरे दोस्त.....,
वही कविता है......!
अनुजा
11.02.06
हो या न हो....
अपने साथ है जो
वही कविता है.....
हूं...या नहीं हूं....के द्वन्द्व से पर
अपने होने या नहीं होने के बीच
सरकती है जो
वही कविता है....
समय की ताल पर धड़कती है तो
ख़त्म हो जाती है समय के साथ वह
पर जब धड़कती है तुम्हारे सीने में
तो वह कविता है.....
तुम्हारे खोने या मेरे बिछुड़ने में.....
तुम्हारे हंसने या मेरे रोने में......
तड़तड़ाती बारिश की मोटी-मोटी बूंदों में.....
टहनियों की सरसराती गुफ्तगू में....
मज़दूर की कुदाल या किसान के हंसिये में......
कहीं भी
जो मिलाती है तुम्हारी धड़कन से ताल .....
वही कविता है.....
तेजी से भागते ट्रैफिक, बस में बजते फूहड़ गीतों
या प्रदूषण की दम घोंटती गंध के बीच
हवा के बसंती मस्त झोंके में
छूकर गुज़र जाती है जो मन
वही कविता है......
मेरे दोस्त, तुम्हारी नज़र के मापक की
मोहताज नहीं है जो.....
वही कविता है ....
मेरे दोस्त.....,
वही कविता है......!
अनुजा
11.02.06
nice poem....
जवाब देंहटाएंnice poem..
जवाब देंहटाएंकविता...किसी की बपौती नहीं...जागीर नहीं...स्वान्तः सुखाय है...कविता.
जवाब देंहटाएंवही तो.....।
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