सोमवार, 14 नवंबर 2011

अशआर

मुहाफि़ज़ आ रहे हैं, रास्‍ते वीरान हो जाएं
कुछ इस्‍तक़बाल के उनके सरो-सामान हो जाएं।।

वो आशिक़ हैं हमारे ही औ पर्दा भी हमीं से है
ये हसरत है कि अब घर बे दर-ओ-दीवार हो जाएँ।।




दोस्‍तों से यही बस गिला रह गया
अजनबी सा कोई आश्‍ना रह गया।।

सब बिछुड़ते गए ख्‍़वाहिशों की तरह
राह में हमसफर रास्‍ता रह गया।।




अनुजा

ग़ज़ल

मेरी मंजि़ल कहां है या मुझे इतना बता दे तू
नहीं तो राह में बिखरे हुए पत्‍थर हटा दे तू।।

भटकती फिर रही है जि़न्‍दगी यूं ग़म के सहरा में
कहीं पर एक छोटा सा कोई दरिया दिखा दे तू।।

तुझे मालूम है कि थक गए हैं पांव अब मेरे
मेरे पांवों को रूकने के लिए अब सायबां दे तू।।

मुझे इस जि़न्‍दगी की तल्खियों ने तोड़ डाला है
कभी अपना कहे कोई तो ऐसा राज़दां दे तू।।

बड़ी आसान लगती हैं उसे ये गल्तियां मेरी
मुझे अब दे सुकूं ऐसा कोई तो आशियां दे तू।।

अनुजा
12.09.96

ग़ज़ल

ये माना हार रहे हैं तुम्‍हारी मौजों से
समन्‍दरों के भी तूफां मगर संभाले हैं ।।

ये तीरगी का समां देर तक रूकेगा नहीं
कहीं वो दूर पे छुपकर खड़े उजाले हैं ।।

तुम्‍हारे तेज थपेड़ों से बुझ सकेगा नहीं
बड़ी उम्‍मीद से रौशन दिया ये बाले हैं।।

लगी है जि़द कि यहीं आशियां बनाएंगे
वो रोक पाएंगे क्‍या जो बड़े जियाले हैं।।

चलेंगे तर्ज़ पे अपनी ज़माना आयेगा
हज़ार जख्‍़म इसी इक सुकूं ने पाले हैं।।

उफक पे डूब रहा आफताब, जाने दो
कि माहताब तो हर रंग में निराले हैं।।

ये ठीक है कि अकेले हैं इस सफर में हम
समय ने दूर बहुत काफिले निकाले हैं।।

जो गिर गया है बटोही तो हार मत जानो
कि उठ के चलने की हिम्‍मत अभी संभाले है।।

अनुजा
09.09.96
जब पैरों के नीचे
जलती है ज़मीन
और
सिर पर
आग उगलता है आसमान ,
तब
आता है समझ में
जीवन
का सही मतलब...!
तुम्‍हें क्‍या पता
कि
चिलचिलाती हुई ज़मीन
कैसे अपनी लपटें पहुंचाती है
जूतों के पार
मेरे तलवों तक.... !
तुम्‍हें क्‍या पता
कि
जि़न्‍दगी कितने इम्तिहान ले सकती है
इंसान के....
तुम्‍हें क्‍या पता
कि
किस चांदनी के लिए
सह रहे हैं पांव
अभी भी धूप की तपन को..... !

अनुजा
21.09. 96

नींव के पत्‍थर हैं हम....

नींव के पत्‍थर हैं हम.... !
हक़ नहीं है हमें
बुर्ज की सुन्‍दरता में शामिल होने का....!
मंजि़लों की राज‍नीति में कहीं भी फिट नहीं होते हैं
हम से कुरूप बदनुमां पत्‍थर...
जो
नींव की मज़बूती के लिए
खामोशी से स्‍वीकार करते हैं
मृत्‍यु का अंधकार......!

अनुजा
19.09.96