बुधवार, 18 अक्तूबर 2023

स्वप्न-सत्य.....!

स्वप्न तो जितना मधुर है
सत्य उतना ही कठिन है !

        स्वप्न में तो साथ तुम हो
        और फागुन भीगता है
        सत्य लेकिन है यही कि 
        मन अकेला रीतता है ।
                    स्वप्न तो है पुष्पमय 
                    पर सत्य काँटों से भरा है
                            स्वप्न है यदि चाँदनी तो
                            सत्य सूूरज की तपन है ।

    स्वप्न तो यह कह रहा है
    दीप आशा के जलाओ
    सत्य का लेकिन झकोरा 
    कह रहा मत मन लगाओ ।
               स्वप्न यदि मधुमासमय तो
                सत्य आँसू से भरा है।
                          स्वप्न शीतल छाँह यदि तो
                           सत्य मेघों की अगन है!
   
  स्वप्न तो मधुरिम मिलन पर 
  सत्य बिछुड़न से भरा है
  स्वप्न केवल प्राप्ति लेकिन 
  सत्य आँखों से झरा है। 
            स्वप्न लय, सुर, ताल है तो
            सत्य शापित अप्सरा है।
                    स्वप्न दीपक आस का यदि
                    सत्य तो तम की किरन है !

  स्वप्न कहता है- मिलेगा
  वो जिसे तुम चाहते हो,
  सत्य हँसता है- मिटोगे
  यदि उसे तुम माँगते हो। 
          स्वप्न कहता है- क्षणिक ही 
           पर खुशी से आज जी लो,
                    सत्य कहता है- मगर ये 
                    अब सुनो- तुम आँख भर लो।
      
    जो मिला अब तक, तुम्हारा
     था, तभी तुम छीन पाए
                अब न कुछ भी हाथ आएगा
                मेरी यह बात सुन लो !
                        स्वप्न क्या टूटी अधूरी कल्पना है
                        सत्य क्या है, स्वप्न का अंतिम चरण है।

    19.09.1995
    अनुजा

   (उत्तर प्रदेश पत्रिका में प्रकाशित )

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