लिखने के बाद उनको पढ़ने के लिए भेजी थी....
अचानक पता चला कि पत्रिका में प्रकाशन के लिए चयनित हो गई है.....वास्तविक रचना वही जिसे पाठक चुन ले.... जो किसी को इस तरह छू जाए कि वह उस पर अपना अधिकार समझ ले..... आभार कि रचना आपको छू सकी... लिखना सार्थक होता है यदि वह किसी एक को भी बाँध सके....
गहरे अकेलेपन के बीच में
बहुत फँसा होना क्या होता है...
उस व्यक्ति से पूछो....
जिसके आस-पास बहुत लोग हों....
और
वह नितांत अकेला हो.....
अपने विचार में....
अपने ख्याल में....
अपनी ज़रूरत में....
अपनी अनुभूति में....
जो मिलना चाहता हो किसी से....
किसी ऐसे से
जो
सुन सके उसे....
बिना किसी निर्णय के....
बिना किसी विचार के....
बिना किसी पूर्वाग्रह के....
सिर्फ
सुनने के लिए....
जो
समझ सके उसे...
उसकी स्थितियों को....
उसके फँसेपन को....
उसके न समझ में आने को....
और
मुक्त कर सके उसको....
उसके फँसेपन से....
गज-ग्राह की तरह....
बिना
उसे छुए....
स्पर्श किए....
किसी जादुई शक्ति से....!
बहुत फँसा होना क्या होता है...
उस व्यक्ति से पूछो....
जिसके आस-पास बहुत लोग हों....
और
वह नितांत अकेला हो.....
अपने विचार में....
अपने ख्याल में....
अपनी ज़रूरत में....
अपनी अनुभूति में....
जो मिलना चाहता हो किसी से....
किसी ऐसे से
जो
सुन सके उसे....
बिना किसी निर्णय के....
बिना किसी विचार के....
बिना किसी पूर्वाग्रह के....
सिर्फ
सुनने के लिए....
जो
समझ सके उसे...
उसकी स्थितियों को....
उसके फँसेपन को....
उसके न समझ में आने को....
और
मुक्त कर सके उसको....
उसके फँसेपन से....
गज-ग्राह की तरह....
बिना
उसे छुए....
स्पर्श किए....
किसी जादुई शक्ति से....!
अनुजा
उत्तर प्रदेश पत्रिका में प्रकाशित..
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