एक एहसास है...
एक आहट सी....
मन में.....
वसन्त तो कभी भी आ सकता है.....!
कुछ वसंत
मन को इतना जकड़ क्यों देते हैं.....
कि
किसी भी पलाश के लिए जगह ही नहीं बचती.... !
झरती रहती हैं पत्तियां जब ...
खिलता रहता है अमलतास....
जेठ की
तमतमाती धूप में भी....
फिर भी
ठिठक जाता है वसंत....
दहलीज के उस पार.....
कुछ वसंत
मन को इतना जकड़ क्यों देते हैं....
ढलता नहीं
रूक जाता है....
ठहर जाता है....
कहीं
रिश्तों के बीच....
कोई कोना वसंत का....
क़ैद हो जाता है
एक चौखट में....
मन की तो उम्र नहीं होती....
पर
रिश्तों की होती है....
जीने के लिए
छोड़ दिए जाते हैं वसंत पीछे.....
उम्र के साथ बढ़ते नहीं.....
ठिठके हुए वसंत.....
पर ठहर जाते हैं कहीं किसी मोड़ पर.....
रूककर चलते हुए.....
उम्र के साथ बढ़ते नहीं.....
फिर
बूढ़े क्यों हो जाते हैं वसंत....?
अनुजा
26.09.2010
एक आहट सी....
मन में.....
वसन्त तो कभी भी आ सकता है.....!
कुछ वसंत
मन को इतना जकड़ क्यों देते हैं.....
कि
किसी भी पलाश के लिए जगह ही नहीं बचती.... !
झरती रहती हैं पत्तियां जब ...
खिलता रहता है अमलतास....
जेठ की
तमतमाती धूप में भी....
फिर भी
ठिठक जाता है वसंत....
दहलीज के उस पार.....
कुछ वसंत
मन को इतना जकड़ क्यों देते हैं....
ढलता नहीं
रूक जाता है....
ठहर जाता है....
कहीं
रिश्तों के बीच....
कोई कोना वसंत का....
क़ैद हो जाता है
एक चौखट में....
मन की तो उम्र नहीं होती....
पर
रिश्तों की होती है....
जीने के लिए
छोड़ दिए जाते हैं वसंत पीछे.....
उम्र के साथ बढ़ते नहीं.....
ठिठके हुए वसंत.....
पर ठहर जाते हैं कहीं किसी मोड़ पर.....
रूककर चलते हुए.....
उम्र के साथ बढ़ते नहीं.....
फिर
बूढ़े क्यों हो जाते हैं वसंत....?
अनुजा
26.09.2010
फोटो: अनुजा