बुधवार, 22 अगस्त 2012

क्‍यों.....

क्‍यों चाहते हो
कि
सरक जाए
मेरे
मोहासक्‍त हाथ से
कर्त्‍तव्‍य का गांडीव.....
क्‍यों चाहते होकि

रचना हो एक बार फिर
किसी गीता की....
जीवन के इस महाभारत में......
अनुजा
26.02.96


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