मैं क्या हूं.....
सूरज की एक किरन
फूल की एक पंखुड़ी
ओस की एक बूंद
हवा में उड़ता कोई आवारा पत्ता
आंधी का एक झोंका
आग की एक लपट
या
जीवन की एक धड़कन
मुझे आज कुछ भी नहीं पता अपना
अपने आप से अनजान मैं
अपनी ही तलाश में हूं इस सफर में
मैं अग्निशिखा अमृता
अब किसी अग्निपरीक्षा के लिए नहीं हूं
मैं न काली हूं
न दुर्गा
न गौरी
न भैरवी
न मैं याज्ञसेनी हूं
न गार्गी मैत्रेयी
न कात्यायनी
मैं इंसान हूं।
-अनुजा
2007
सूरज की एक किरन
फूल की एक पंखुड़ी
ओस की एक बूंद
हवा में उड़ता कोई आवारा पत्ता
आंधी का एक झोंका
आग की एक लपट
या
जीवन की एक धड़कन
मुझे आज कुछ भी नहीं पता अपना
अपने आप से अनजान मैं
अपनी ही तलाश में हूं इस सफर में
मैं अग्निशिखा अमृता
अब किसी अग्निपरीक्षा के लिए नहीं हूं
मैं न काली हूं
न दुर्गा
न गौरी
न भैरवी
न मैं याज्ञसेनी हूं
न गार्गी मैत्रेयी
न कात्यायनी
मैं इंसान हूं।
-अनुजा
2007
चलो, तुमने कुछ पोस्ट तो किया...इतना अच्छा कहती हो...जल्दी-जल्दी लिखा करो.
जवाब देंहटाएंअरे अनुजा,गलती से वह कमेन्ट सुदंर की आई.डी से पोस्ट हो गया.वह हमने किया है.
जवाब देंहटाएंनमिता
कोई बात नहीं....हां अंदाज़ से मैं थोड़ा चकित थी....।
जवाब देंहटाएंपर शुक्रिया...। ये बहुत पुरानी कविताएं हैं...., 13 तारीख को कुछ कविताएं नारी पर शमशेर के जन्मदिन की गोष्ठी के मौके पर कुछ मेरे लिए नई पर शायद शहर, साहित्य और फेस बुक के लिए पुरानी कवियत्रियों की सुनी तो याद आया कि कभी हमने भी लिखी थीं कुछ कविताएं....सो खोज कर पोस्ट कर दीं.....।
हम तो कभी मान न पाए खुद को कवि...सो कभी बाहर लाने की हिम्मत भी नहीं हुई और कुछ अपने खास लोगों के अलावा कोई जानता भी नहीं....।
पर तुरन्त ही आपकी टिप्पणी पाकर अच्छा लगा...
।