मुक्ति की एक सख़्त सुबह
पराधीनता की पीड़ा से भरे
कोमल बिछौने से ज्यादा सुख़द है...
सुन्दर है....
मैं छू पाती हूं
सुनहरी सुबह की रक्तिम लकीरें...
डूबते चमकीले चांद की लुनाई...
कतार दर कतार ओढ़नी सी उड़ती
पराधीनता की पीड़ा से भरे
कोमल बिछौने से ज्यादा सुख़द है...
सुन्दर है....
मैं छू पाती हूं
सुनहरी सुबह की रक्तिम लकीरें...
डूबते चमकीले चांद की लुनाई...
कतार दर कतार ओढ़नी सी उड़ती
परिन्दों की पांतें....
नए रास्तों को तलाशने का उत्साह और उजास....
भर पाती हूं लंबी गहरी सांसें
संभाल पाती हूं प्राणों में प्राण वायु....।
क्या हुआ....
जो शुरू होगा
चुनौतियों का नया सफ़र....
बांज के नीचे बहते सोते
का ठंडा जल अब होगा
मेरा अंजुरियों में......
लगता होगा उन्हें
कि
चुक गया मेरा आसमान...
पर
मेरे हाथ में है.....
चांद का पश्मीना....
धूप की चादर....
हवाओं की ओढ़नी......
पेड़ों की सरगोशियां....
पंछियों की छुन छुन की
रेशमी गुनगुनाहट....
मुक्ति का उत्सव है......
संघर्ष.....
संघर्ष देता है प्रेरणा.....
चौराहे पर बनाने के लिए कोई एक पांचवा रास्ता.....।
अनुजा
02.10.12
नए रास्तों को तलाशने का उत्साह और उजास....
भर पाती हूं लंबी गहरी सांसें
संभाल पाती हूं प्राणों में प्राण वायु....।
क्या हुआ....
जो शुरू होगा
चुनौतियों का नया सफ़र....
बांज के नीचे बहते सोते
का ठंडा जल अब होगा
मेरा अंजुरियों में......
लगता होगा उन्हें
कि
चुक गया मेरा आसमान...
पर
मेरे हाथ में है.....
चांद का पश्मीना....
धूप की चादर....
हवाओं की ओढ़नी......
पेड़ों की सरगोशियां....
पंछियों की छुन छुन की
रेशमी गुनगुनाहट....
मुक्ति का उत्सव है......
संघर्ष.....
संघर्ष देता है प्रेरणा.....
चौराहे पर बनाने के लिए कोई एक पांचवा रास्ता.....।
अनुजा
02.10.12
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