हर बार
हारने का शाप
मुझे ही क्यों देती है
मां गांधारी.....
मैं
जो हर बार
रचता हूं एक नई गीता
बनाता हूं
एक नया अर्जुन....
करता हूं
पांचजन्य का उद्घोष.....
कहता हूं
लड़़ने के लिए स्थितप्रज्ञ हो.....
आज मैं क्यों कमज़ोर पड़ता जा रहा हूं.....
क्यों खींचते हैं
आज मेरे हाथों को
गोपिकाओं के आंचल.....
क्यों बुलाती है
राधा की
रंगीली बांसुरी....
क्यों अकुलाती है
यशोदा की ममता....
क्यों.....।
अनुजा
26.12.1996
हारने का शाप
मुझे ही क्यों देती है
मां गांधारी.....
मैं
जो हर बार
रचता हूं एक नई गीता
बनाता हूं
एक नया अर्जुन....
करता हूं
पांचजन्य का उद्घोष.....
कहता हूं
लड़़ने के लिए स्थितप्रज्ञ हो.....
आज मैं क्यों कमज़ोर पड़ता जा रहा हूं.....
क्यों खींचते हैं
आज मेरे हाथों को
गोपिकाओं के आंचल.....
क्यों बुलाती है
राधा की
रंगीली बांसुरी....
क्यों अकुलाती है
यशोदा की ममता....
क्यों.....।
अनुजा
26.12.1996
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