गुरुवार, 13 अक्तूबर 2016

ओ नदी.....


ओ नदी.....
बेचैन आत्‍मा सी भागती कहां जा रही हो....
ये तीव्र आकुलता
और ये पथरीला रास्‍ता....
तुम्‍हारे रेशमी दुपट्टे में लगे हैंं घाव कितने....
पांव आहत हृदय भीगा भग्‍न....
किस ठौर ठहरेगी, रूकेगी....
पांचाली 
तुम्‍हारी बेचैन आत्‍मा....
कब सूखेंगें...
वैदेही
तुम्‍हारे पथराये नयनों के अश्रु....
कहां पूर्ण होगी 
राधिेके 
तुम्‍हारी प्रतीक्षा....
कब तुम्‍हारे कक्ष में लौटेंगे
यशोधरा.....
तुम्‍हारे बुद्ध 
अपने गौतम के साथ..... 
या कि
सदियों तक उड़़ता रहेगा तुम्‍हारा ये रेशमी आंचल
अयोध्‍या की अंगनाई में....
या लखन की निद्रा
लेकर देती ही रहोगी 
उर्मिला
तुुम उन्‍हें जागरण का उपहार.....

ओ नदी.....

अनुजा
13.10.2016

फोटो : साभार: खजान सिंह जी....

रविवार, 10 अप्रैल 2016

सवाल और भी हैं.....

समय की वॉल पर आईना....
देखने का वक्त है यह....

चेतावनियों और चुनौतियों का समय है....
जब क़ीमती है तुम्हािरी बस एक चाल....
तब ख़ामोश बैठने....
परंपराओं के समय के साथ जाने
या
उनको बदलने के लिए ख़ुद को बदलने के समय
चुप बैठने से नहीं चलने वाला काम....

चुप्पी को तोड़ने
झकझोरने के वक्तल...
सही को चुनने की चुनौती भी है.....

पर एक सवाल फिर भी....
विकल्प कहां है....
कौन है....
क्या है....

125 करोड़ लोगों की आबादी के पास
धर्म, जाति, संप्रदाय, लैपटॉप, कंबल, साड़ी, राम मन्दिर

गुजरात, गोधरा, अयोध्याो, रोटी, भूख महंगाई, भ्रष्टाचार की चौसर पर
बंट जाने के अलावा विकल्प, क्याा है......

किसी नए रोडमैप, मंजि़लों और मुद्दों वाला कोई पाइड पाइपर है.....

समय है चेतावनियों और चुनौतियों का....
देश मर रहा है....
राष्ट्रर जल रहा है....

तैयारी है महासमर की....
एक नए महाभारत की....

क्या कोई पाइड पाइपर है......
हाथ में लिए हुए जादुई बांसुरी....
समय और इतिहास की संधि पर प्रतीक्षित
एक नए भविष्य की रचना को तत्पर....

अनुजा
7 अप्रैल, 2014

बुधवार, 17 फ़रवरी 2016

मौसम हुआ अमलताश.....


सुलगती दोपहरों में....
सोने की चमक....
के साथ...
नीले धुले आसमान की छाती पर 
खिल उठा मौसम.....
अमलताश.....अमलताश....
लो, फिर आ गया वसंत.....

अनुजा
10.05.14