किसी के लिए दीदी हूं....
किसी के लिए दोस्त हूं....
अपनों के लिए प्यार हूं....
दुखिया के लिए आवाज़....
दुखिया के लिए आवाज़....
दुनिया के लिए संवेदना भी हूं.....
जिज्ञासा भी....
सवाल भी....
किसी के लिए बेबाकी हूं...
किसी के लिए संयम....
तुम्हारे लिए प्रेम हूं....
उसके लिए याद....
तुम्हारे लिए प्रेम हूं....
उसके लिए याद....
अपने अपने रंग हैं और अपनी अपनी नज़र....
जि़न्दगी के लिए राही हूं....
अलमस्त....हरफनमौला...
अपने लिए......
जूझने और बार-बार उठ खड़े होने की ताकत....
अनुभव और सबक के साथ....।
तुम तय करो अपना.....
अपना उल्लास...
या
अभिशाप....
दरिया की कोई मौज....
बादल का एक टुकड़ा....
बारिश की एक बूंद
....
हवा का एक आवारा झोंका....
रास्ते का एक पत्थर.....
या
पत्थर का एक रेशमी टुकड़ा....
या
पत्थर का एक रेशमी टुकड़ा....
ओ आकाश
तुम्हारी सरगोशियां क्या कहती हैं......
हवाओं
खामोशी के कान में फूंका है तुमने
कौन सा मंत्र.....
क्या बताया है मेरा पता.....
धूप
तुम ही कहो
चुप न रहो
कि
जान सकूं मैं.....
कि
कौन हूं मैं
कि
समझ आए अपना एक और रंग.....
धूप-छांही....
मोरपंखी....
राख-राख वैराग्य....
या फिर....
जो भी है जिसकी नज़र।
अपनी तलाश में हूं......
मैं
अग्निगर्भा अमृता....।
अनुजा
16.07.13
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