रविवार, 6 अक्तूबर 2013

सांप्रदायिकता, राजनीति और हम....


हमने जब सफ़र शुरू किया था.....
गहरे दोस्त थे.........

आज
मैं तुम्हारे लिए एक हिन्दू भर कैसे रह गयी......
तुम आज दोस्ती के चोले को छोड़
केवल
मुसलमान कैसे रह गयीं........?

अपनी जि़दों और ज़दों के कटघरे में कै़द हो
तुमने ना सिर्फ मेरे भगवान को छोड़ा
बल्कि
अपने ख़ुदा को भी मुझसे जुदा कर दिया.....
जिसे
मैंने पुकारा हर बार उसी शिद्दत से अपने भगवान के साथ....
जिससे
मांगी हर बार तुमने दुआ
मेरे ही लिए......

तुमने  आज उस ख़ुदा का भी बंटवारा कर दिया.......

तुम आज उनके पाले में कैसे हो
जो
मुझे तुम्हें बांटकर अपनी सत्ता की सीमाओं को और बड़ा करना चाहते हैं......

तुम,
जो उनकी गलतियों से क्षुब्ध और भयभीत हो.....
आज उनकी गलतियों को दोहरा रही हो.....
यानि कि वो अपने मकसद में कामयाब रहे.....
और हम
नाकामयाब मोहब्बत के दर्द के साथ तन्हा हो गए........!

हमें तो यह लड़ार्इ फिर से लड़नी पड़ेगी....
किसी नर्इ रणनीति के साथ......
क्योंकि
अब यह लड़ार्इ केवल दुश्‍मनों से नहीं है
उन दोस्तों से भी है
जो
आज हमारे दुश्‍मनों के साथ खड़े हैं......!

10.05.07
अनुजा

सांप्रदायिकता, राजनीति और हम....-1

(1)
तुम्हारी
ये दलील उनकी जीत है.......
तुम्हारा
मुझे कटघरे में खड़ा करना
उनकी जीत है......
तुम्हारा
मुझ पर उंगली उठाना
उनकी जीत है.....


(2)

बरसों बीत गए......
हम मिले.....
दोस्त बने.......
हमने
अपने सुख दु:ख बांटे.....
अपना प्यार बांटा....
राज़दार बने एक दूसरे के ......
बरसों
हमने एक दूसरे को बड़े भावपूर्ण ख़त लिखे.......
एक दूसरे को भूल जाने के उलाहने दिए.....
एक दूसरे से रूठे और मनाए......

और आज !
आज तुमने उनकी साजि़श को कामयाब कर दिया......
तुमने
मुझे बेगाना करके
उनकी हर चाल को कामयाब कर दिया.....

तुमने !
जो हर सदी में उस वक्त मेरे साथ दिखी
जब सबने मेरा साथ छोड़ दिया........
जब मुझे उसकी ज़रूरत थी......
तुमने आज
मुझे बेसहारा और अकेला कर दिया......

राजनीति और सत्ता की लड़ार्इ में
मेरी आस्थाओं को चुनौती देकर
तुमने
आज मुझे इस नृशंस भीड़ में असहाय छोड़ दिया....

मैं सोचती थी कि
जब तक तुम मेरे साथ हो
उनकी कोर्इ चाल कामयाब नहीं हो सकती.......!
पर
आज मैं विश्वास, विकास और प्रयास की लड़ार्इ को हार गयी......!

तुम
मुझे छोड़कर उनके पक्ष में कैसे हो गर्इं
जो
मुझे और तुम्हें बरसों से अलग करने की कोशि श कर रहे हैं.......
और
हमारा प्यार उन्हें हमेशा पटखनी देता रहा.....!

तुमने
इतिहास, संस्कृति, समय, इंसानियत और प्रेम सबको नकारते हुए
उनको चुन लिया
जो
हमारे प्यार की मौत
और
तुममें रगे जां तक भर दिए गए भय और असुरक्षा की नींव पर ,
अपनी सत्ता की मीनार खड़ी करना चाहते हैं.....

तुमने ऐसा क्यों किया.....?

(3)

यों मत जाओ तुम....
रुको...ठहरो.....
कि
मैं तुम्हारे साथ हूं.......
कोर्इ ख़ुदा
या
कोर्इ भगवान
चाहे वो कितने ही रूपों में आए
या अरूप.....
क्या हमारे प्यार और विश्‍वास से बड़ा है ?
कोर्इ हिजाब या बेहिजाब संस्कृति.....
क्या उसकी उम्र हमारे साथ से बड़ी है ?
मैं तो ऐसा नहीं सोचती.....
और तुम?

अनुजा
8.5.07


गुरुवार, 3 अक्तूबर 2013

तुम्हारे बाद... 3


इस सड़क पर 
इस नीम के नीचे.....
अपनी पीली उजास के साथ 
तुम्हारे इन्तज़ार में.....
अब कभी इधर नहीं देखती मैं....
न पीली उजास है 
न तुम्हारा इंतजार....
बस केवल वह नीम इकलौता अपने साथ....
केवल अपने साथ
समेटे अपनी पत्तियों में कर्इ इंतजारों का इतिहास
मोहब्बतों का गवाह.....!

अनुजा
08.10.07

तुम्‍हारे बाद...2


शाम 
आज फिर उदास हो गयी है......
तुम्हारे 
जाने के बाद सन्नाटे ने समेट लिया है 
अपनी बाहों में  मुझे......!

27.05.06
अनुजा

तुम्‍हारे बाद.....1



आसमान
बहुत रो रहा है इस बार
बेमौसम....
तुम खो जो गए 
मिलकर....
दहाड़ती है कभी कभी
पीड़ा
उसकी छाती में.....!


अनुजा
21.03.05